ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बाद आता है जीवन जीने का सलीका : निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

होशियारपुर, 23 दिसम्बर (MANNA): मानव जीवन बहुत ही कीमती है, इसका सदप्रयोग करना चाहिए। प्यार, विनम्रता, सहनशीलता व अन्य दैवी गुण सत्संग में आने से प्राप्त होते है। उक्त विचार रायबरेली में आयोजित निरंकारी संत समागम के दौरान निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने प्रकट किए। उन्होंने फरमाया कि जीवन जीने का सलीका ब्रह्मज्ञान रूपी अनमोल रत्न हासिल करके किया जा सकता है।

 

अगर हम किसी को दुख देते है तो सुख हासिल होगा यह संभव नहीं है। अगर कोई जलता हुआ कोयला हम किसी की तरफ फेंकते है तो सबसे पहले हमारा हाथ ही जलेगा। इसी तरह अगर हम किसी का नुकसान करते है तो हमारा नुकसान होना निश्चित है।

कोई भी किसी भी प्रकार से दुख में है तो उसकी सहायता करने का भाव हमेशा होना चाहिए। परिस्थितियां तो जीवन में अनेको आती है पर भक्त जनों को परमात्मा जितना देता है, उसमें ही शुक्राना करते हुए जीवन व्यतीत करते है। ब्रह्मज्ञान के बाद इंसान को पता चल जाता है कि सभी में एक परमात्मा की अंश आत्मा है, तभी मानव जीवन को श्रेष्ठ कहा गया है। इस दौरान भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंच कर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज का आर्शीवाद प्राप्त किया।

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